Tuesday, May 5, 2009

“लँड पूरा खडा है क्या?

अगली सुबह, मुझे क्लास के लिये जाना था इसलिये मैं उन दोनो को सोता छोड के वहाँ से निकल लिया! मगर उनके साथ बिताये वो प्यार के लम्हे रास्ते भर याद करता रहा! विक्रान्त भैया उठ गये थे! उन्होने कहा कि वो दोपहर में उनको अपने साथ मेरे रूम तक ले आयेंगे!

उस दिन मैं आकाश की जवानी देख कर मस्ती लेता रहा! वो व्हाइट पैंट में जानलेवा लगता था! उसके अंदर एक चँचल सा कामुक लडकपन था और साथ में देसी गदरायी जवानी जो उसे बडा मस्त बनाती थी! मैं तो रात-दिन बस नये नये लडकों के साथ चुदायी चाहता था मगर ऐसा शायद प्रैक्टिकली मुमकिन नहीं था! फ़िर मेरे टच में एक स्कूली लौंडों का ग्रुप आया, वो मेरे रूम के आसपास ही रहते थे! उनमें से दीपयान उणियाल, जो एक पहाडी लडका था, उसके साथ राजेश उर्फ़ राजू रहा करता था और एक और लडका दीपक उर्फ़ दीपू था, जिसके बाप की एक सिगरेट की दुकान थी जहाँ से मैं सिगरेट लिया करता था! अपनी उम्र से ज़्यादा लम्बा और चौडा, दीपू, अक्सर वहाँ मिलता था जिसके कारण मेरी दोस्ती दीपयान और राजू से भी हो गयी थी!

तीनों पास के गवर्न्मेंट स्कूल में पढने वाले, अव्वल दर्जे के हरामी और चँचल लडके थे, जिनको फ़ँसाना मेरे लिये मुश्किल नहीं था! बशर्ते वो इस लाइन में इंट्रेस्टेड हों! तीनों अक्सर अपनी स्कूल की टाइट नेवी ब्लू घिसी हुई पैंट्स में ही मिलते! मैं उनके उस हल्के कपडे की पैंट के अंदर दबी उनकी कसमसाती चँचल जवानियों को निहारता!

दीपयान गोरा था, लम्बा और मस्क्युलर! राजू साँवला था, ज़्यादा लम्बा नहीं था मगर उसके चेहरे पर नमक और आँखों में हरामी सी ठरक थी! जबकि दीपू स्लिम और लम्बा था, उसकी कमर पतली, गाँड गोल, होंठ और आँखें सुंदर और कामुक थी! अब मैं असद और विशम्भर के अलावा अक्सर इन तीनों को भी मिल लेता था! तीनों मेरे अच्छे, फ़्रैंडली सम्भाव से इम्प्रेस्ड होकर मेरी तरफ़ खिंचे हुये थे और उधर आकाश मेरे ऊपर अपनी जवानी की छुरियाँ चला रहा था! अब तो मुझे कॉलेज के और भी लडके पसन्द आने लगे थे! उन सब के साथ उस रात काशिफ़ का मिलना और राशिद भैया के साथ वो हल्का सा प्रेम प्रसँग मुझे उबाल रहा था!

मौसम अभी भी काफ़ी सर्द था, जिस कारण मुझे लडकों के बदन की गर्मी की और ज़्यादा चाहत थी! उस दिन मैं और आकाश बैठे बातें करने में लगे हुये थे! हमारे साथ कुणाल भी था! आकाश उस दिन अपने क्रिकेट के लोअर और जर्सी में था! बैठे बैठे जब उसने कहा कि उसको पास की मार्केट से किट का कुछ सामान लेने जाना है तो हम दोनो भी उसके साथ जाने को तैयार हो गये! और फ़िर उस दिन उस भीड-भाड वाली बस में जो हुआ उससे मैं और आकाश बहुत ज़्यादा फ़्रैंक हो गये! बस में हम साथ साथ खडे थे और बहुत ज़्यादा भीड थी! मैं खडा खडा आकाश का चेहरा निहार रहा था और उसकी वो गोरी मस्क्युलर बाज़ू भी, जिससे उसने बस का पोल पकडा हुआ था! उसके चेहरे पर एक प्यास सी थी! उसकी आँखों में कामुकता का नशा था, वो कभी मुझे देखता कभी इधर उधर देखने लगता!

फ़िर जब हम बस से उतरे तो उसने चँचलता से हमें अपना लोअर दिखाया, जिसमें शायद उसका लँड खडा था और उठा हुआ था!
“देख साले…”
“अबे क्या हुआ?”
“क्या बताऊँ यार, साला मेरे बगल में वो लौंडा नहीं था एक?”
“हाँ था तो… क्या हुआ?”
“अरे यार, साला मेरा लँड पकड के सहला रहा था मादरचोद… देखो ना खडा करवा के छोड गया…” आकाश ने बताया तो मैं तो कामुक हो उठा और कुणाल हँसने लगा मगर मुझे लगा कि शायद वो भी कमुक हो गया था!
“अबे, तूने मना नहीं किया?” कुणाल ने पूछा!
“मना कैसे करता, बडा मज़ा आ रहा था… हाहाहाहा…”
“बडा हरामी है तू… ” मैने कहा!
“तो उतर क्यों गया? साले के साथ चला जाता ना..” कुणाल ने कहा!
“अबे अब ऐसे में इतना ही मज़ा लेना चाहिये…”
“वाह बेटा, मज़ा ले लिया… मगर लौंडे के हाथ में क्या मज़ा मिला?”
“अबे, लँड तो ठनक गया ना… उसको क्या मालूम, हाथ किसका था… हाहाहा…”
“हाँ बात तो सही है…” कुणाल ने कहा फ़िर बोला “तो साले की गाँड में दे देता…”
“अबे बस में कैसे देता, अगर साला कहीं और मिलता तो उसकी गाँड मार लेता…”
मैं तो पूरा कामुक हो चुका था और हम तीनों के ही लँड खडे हो चुके थे मगर मैं फ़िर भी शरीफ़ स्ट्रेट बनने का नाटक कर रहा था! पर दिल तो कुछ और ही चाह रहा था! मैने बात जारी रखी!
“तेरा क्या पूरा ताव में आ गया था?”
“हाँ और क्या, साला सही से पकड के रगड रहा था… पूरा आँडूओं तक सहला रहा था!” जब आकाश ने कहा तो मुझे उस लडके से जलन हुई जिसको आकाश का लँड थामने को मिला था मैं तो उस वक़्त उस व्हाइट टाइट लोअर में सामने की तरफ़ के उभार को देख के ही मस्त हो सकता था!

शायद कुणाल को भी उस गे एन्काउंटर की बात से मस्ती आ गयी थी क्योंकि उसके बाद वो ना सिर्फ़ उसकी बात करता रहा बल्कि उसकी फ़िज़िकैलिटी भी बढ गयी थी! मुझे आकाश के बारे में एक ये भी चीज़ पसंद थी कि उसकी आँखों में देसी कामुकता और चँचल मर्दानेपन के साथ साथ एक मासूमियत भी थी और एक बहुत हल्की सी शरम की झलक जो उस समय अपने चरम पर थी!

“यार कहीं जगह मिले तो लँड पर हाथ मार कर हल्का हो जाऊँ… साला पूरा थका गया है…”
“अबे, क्या सडक पर मुठ मारेगा?” कुणाल ने कहा!
“अबे तो क्या हुआ, जो देखेगा, समझेगा कि मूत रहा हूँ… हेहेहे…”

उसको ग्लॉवज लेने थे सो ले लिये! फ़िर हम थोडा बहुत इधर उधर घूमे! अब मुझे आकाश के जिस्म की कशिश और कटैली लग रही थी! एक दो बार जब वो चलते चलते मेरे आगे हुआ तो मैने करीब से उसकी गाँड की गदरायी फ़ाँकें देखीं! वो कसमसा कसमसा के हिल रही थीं और उसका लोअर अक्सर उसकी जाँघों के पिछले हिस्से पर पूरा टाइट हो जा रहा था! कभी मैं उसके लँड की तरफ़ देखता, इन्फ़ैक्ट एक दो बार आकाश ने मुझे उसका लँड देखते हुये पकड भी लिया, मगर वो कुछ बोला नहीं!

“क्यों, अगर कोई तेरा लँड पकड लेता तो क्या करता?” उसने मुझसे पूछा!
“पता नहीं यार…”
“पता नहीं क्या?”
“मतलब अगर मज़ा आता तो पकडा देता मैं भी…”
“साला हरामी है ये भी” कुणाल बोला!
“मगर अब वो बन्दा कहाँ मिलेगा, बस साला कहीं किसी और का थाम के मस्ती ले रहा होगा” कुणाल फ़िर बोला!
“हाँ यार, ये भी चस्का होता है”
“हाँ, जैसे तुझे पकडवाने का चस्का लग गया है, उसको पकडने का होगा… हाहाहाहा…” मैने कहा!
“मगर सच यार, मज़ा तो बहुत आया… सर घूम गया! एक दो बार दिल किया, साले को खोल के थमा दूँ…” आकाश ने बडे कामातुर तरीके से कहा! अब वो अक्सर बात करते समय मुझे मुस्कुरा के देखता था!
“अबे वो लौंडा था कैसा?” कुणाल ने पूछा!
“था तो गोरा चिकना सा… तूने नहीं देखा था? मेरे सामने की तरफ़ तो था…” मुझे तो उस लडके की शक्ल याद आ गयी क्योंकि मैने उसको गौर से देखा था!
“हाँ अगर चिकना होता तो मैं तो साले को अगले स्टॉप पर उतार के उसकी गाँड में लौडा दे देता!” कुणाल बोला!
“वाह साले, तू तो हमसे भी आगे निकला” आकाश बोला!
“क्यों साले, तू नहीं मार लेता अगर वो साला तेरे सामने अपनी गाँड खोल देता?”

जब बस आयी तो हम चढ गये! इस बार भी भीड थी मगर किसी ने इस बार हम तीनों में से किसी का लँड नहीं थामा! अब तो हल्का हल्का अँधेरा भी होने लगा था और इस बार आकाश का जिस्म मेरे जिस्म से चिपका हुआ था! इस बार मुझसे रहा ना गया! मैने चुपचाप अपना एक हाथ नीचे किया और उसके ऊपरी हिस्से को हल्के से आकाश की जाँघ से चिपका के कैजुअली रगडने दिया! कहीं से कोई रिएक्शन नहीं हुआ! मैने सोचा था कि अगर वो अजनबी लडके को थमा सकता है तो ट्राई मारने में क्या हर्ज है और वो उस समय ठरक में भी था! मैने अपने हाथ, यानी अपनी हथेली के ऊपरी हिस्से से उसकी जाँघ को सहलाया तो मुझे मज़ा आया और एक्साइटमेंट भी हुआ! जब वो कुछ बोला नहीं तो मुझे प्रोत्साहन मिला! मैं उसकी तरफ़ नहीं देख रहा था बस मेरे हाथ चल रहे थे! धीरे धीरे मैने सही से सहलाना शुरु किया और फ़िर मेरी उँगलियाँ शुरु में केअरलेसली उसके लँड के सुपाडे के पास पहुँची तो उसके लोअर में लँड महसूस करके मैं विचलित हो उठा, उसका लँड अब भी खडा था!

मैने अगले स्टॉप की हलचल के बाद सीधा अपनी हथेली से उसका लँड रगडना शुरु किया और बीच बीच में उसको अपनी उँगलियों से पकडना भी शुरु कर दिया तो वो फ़िर से मस्त हो गया! मैने एक दो बार उसकी तरफ़ देखा तो उसके चेहरे पर सिर्फ़ कामुकता के भाव दिखे! मुझे ये पता नहीं था कि उसको ये बात मालूम थी कि वो मेरा हाथ था! मैं अब आराम से उसका लँड पकड के दबा रहा था! फ़ाइनली जब हमारा स्टॉप आया तो हम उतर गये! मगर तब तक आकाश और मैं दोनो ही पूरे कामुक हो चुके थे!
“क्यों, अब तो कोई नहीं मिला ना साले?” कुणाल ने उतरते हुये पूछा तो मुझे आकाश की ऐक्टिंग के हुनर का पता चला!
“नहीं बे, अब हमेशा कोई मिलेगा क्या? वो तो कभी कभी की बात होती है…” अब मैं समझा कि उसको मालूम था कि वो हाथ मेरा था और शायद उसको इसमें कोई आपत्ति नहीं थी! मगर कुणाल हमारे साथ ही लगा रहा! अब मैं आकाश की चाहत के लिये तडपने लगा था! अँधेरा हो चुका था और मेरे पास आकाश को ले जाने के लिये कोई जगह नहीं थी! हमने चाय पी और इस दौरान आकाश और मैं एक दूसरे को देखते रहे! फ़ाइनली हमें वहाँ से जाना ही पडा!

अगले कुछ दिन मेरी आकाश के साथ उस टाइप की कोई बात नहीं हो पायी! राशिद भैया को नौकरी मिल गयी तो वो रिज़ाइन करने चले गये और काशिफ़ को अलीगढ छोड आये! उन्होने कहा कि वो जब वापस आयेंगे तो कुछ दिन मेरे साथ रहकर मकन ढूँढेगे और इस बीच मुझे कोई अच्छा मकान मिले तो मैं उनके लिये बात कर लूँ! अब तक कुणाल, आकाश, विनोद और मैं काफ़ी क्लोज हो गये थे! शायद हम सबको एक ही चाहत, जिस्म की चाहत ने बाँध रखा था, जिससे हम एक दूसरे की तरफ़ बिना कहे आकर्षित थे!

एक दिन मैं लौटा तो दीपयान गली के नुक्‍कड पर खडा सिगरेट पीता मिला! जैसे ही उसने मुझे आते देखा उसने मुसकुरा के सिगरेट छिपाने की कोशिश की!
“पी लो बेटा, ये सब जवानी की निशानी हैं… शरमाओ मत…” मैने कहा!
“आओ ना, ऊपर आओ… आराम से बैठ के पियो…” उस समय वो स्कूल की नीली पैंट में अपनी कमसिन अल्हड जवानी समेटे बडा मस्त लग रहा था! वो ऊपर आ कर तुरन्त फ़्री होकर बैठ गया और उसके बैठने में मैने उसकी टाँगों के बीच उसका खज़ाना उभरता हुआ देखा! उसकी पैंट जाँघों पर टाइट थी! उसकी हल्की ग्रे आँखें और भूरे बाल, साथ में गोरा कमसिन चिकना चेहरा मस्त थे! साला शायद अँडरवीअर नहीं पहने था जिस कारण उसके लँड की ऑउटलाइन भी दिख रही थी!

“क्यों भैया, अकेले बडा मज़ा आता होगा रहने में?”
“मज़ा क्या आयेगा यार?”
“मतलब, जो मर्जी करो…”
“हाँ वो तो है…”
“काश, मैं भी अकेले रह सकता…”
“क्यों क्या करते?”
“चूत चोदता, खूब रंडियाँ ला ला कर…” वो बिन्दास बोला!
“क्यों?”
“क्योंकि… बस ऐसे ही…”
“अबे खडा भी होता है?”
“पूरा खम्बा है भैया…”
“तुम्हारा गोरा होगा…”
“हाँ भरपूर गुलाबी है…”

मैने नोटिस किया कि लडका शरमा नहीं रहा था और इन सब में बढ चढ के हिस्सा ले रहा था!
“क्यों बेटा रंडी चोदने का आइडिआ कब से है?”
“हमेशा से है..”
“अच्छा? स्कूल में यही सब सीखते हो?”
“और क्या, हमारे स्कूल में बडे मादरचोद लडके हैं… शरीफ़ लडकों की तो गाँड मार ली जाती है…”
“अच्छा? बडा हरामी स्कूल है…”
“अरे भैया, गवर्न्मेंट स्कूल में और क्या होगा… बस समझो ‘सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी’…”
मुझे उसकी बातों में मज़ा आ रहा था, इन्फ़ैक्ट मेरी कामुकता हल्के हल्के बढती जा रही थी! इतनी पास में बैठा, इतनी एक्साइटेड तरह से बात करता हुआ, ये चिकना पहाडी लडका बडा सुंदर और कामातुर लग रहा था!
“क्यों तुझे कैसे पता कि लडको की गाँड मारी जाती है?”
“एक दो की तो मैं भी लगा चुका हूँ… एक साला तो गाँडू है… खुद ही पटाता है और स्कूल के मैदान के साइड वाली झाडियों में लडकों से गाँड मरवाता है!”
“क्या कह रहा है यार… तूने गाँड मारी?”
“बहुत बार मारी है भैया… तभी तो अब लँड, चूत ढूँढने लगा है… गाँड के बाद चूत का मज़ा देखना है…”

अब मैने देखा कि उसका हाथ बार बार अपनी ज़िप पर, अपनी जाँघों पर और अपनी टाँगों के बीच जा रहा था! वो कभी वहाँ अपने खडे होते लँड को अड्जस्ट करता कभी अपने आँडूए सही करता और कभी बस मज़ा लेता था! उसका चेहरा भी गुलाबी हो गया था! उसकी नज़रें भीगने लगें थी, वो कामुक हो रहा था!
“गाँड मारने में मज़ा आता है…”
“भरपूर… और मैं तो तब तक मारता हूँ जब तक लँड से दूध नहीं निकल जाता है… साला राजू भी मेरे साथ मारता है” उसने मुझे बताया!
“अच्छा राजू भी??? कहाँ??? उसने किस की मारी?”
“वही स्कूल वाले लडके की… वो तो साला रंडी है… खूब मरवाता है, हमारे स्कूल में फ़ेमस है…”
“अब तो उसकी गाँड फ़ट गयी होगी?” कहते कहते मुझे अपने स्कूल के दिन याद आ गये, जब मैं भी करीब करीब हर शाम किसी ना किसी लँड से, चाहे बायलॉजी वाले सर हों या पीटी वाले सर या सीनियर क्लास के लम्बे चौडे लौंडें हों या स्कूल मे काम करने नज़दीकी गॉव से आये पिऑन्स…, अपने स्कूल के टॉयलेट मे अपनी गाँड का मुरब्बा बनवाया करता था…

“हाँ मगर साला बडा मज़ा लेता है…”
“क्यों उसने चूसा भी?”
“चूसा??? नहीं चूसता तो नहीं है…”
“ट्राई करना, साला चूस लेगा अगर गाँडू है तो चूसेगा भी…”
“वाह यार भैया, चुसवाने में तो मज़ा आ जायेगा…” वो अचानक चुसवाने के नाम पर और एक्साइटेड हो गया! अब उसका लँड खडा होकर बिना चड्‍डी की पैंट से साफ़ दिखने लगा, जो उसकी टाँगों के बीच उसकी जाँघ के सहारे सामने की तरफ़ आ रहा था और उसकी नेवी ब्लू पैंट पर एक हल्का सा भीगा सा धब्बा बना रहा था, जो शायद उसका प्रीकम था! उसका बदन बेतहाशा गदराया हुआ और गोरा था और अब उसका चेहरा कामुकता से तमतमा रहा था!

“मतलब, तुमने अभी तक चुसवाया नहीं है?”
“नहीं भैया…”
“और राजू ने?”
“उसने भी नहीं… वैसे उसका पता नहीं… मेरे साथ तो कभी नहीं चुसवाया…”
“लँड चुसवाने का अपना मज़ा है…” मैने कहा और उसके बगल में थोडा ऐसे चिपक के बैठ गया कि मेरी जाँघें उसकी जाँघों से चिपकने लगीं! मुझे उसके बदन की ज़बर्दस्त गर्मी का अहसास हुआ! मैने हल्के से ट्राई मारने के लिये उसका हाथ सहलाया और फ़िर हल्के से उसका घुटना! उसके बदन में मज़बूत और चिकना गोश्त था! साला पहाडों की ताक़त लिये हुए पहाडी कमसिन था!

“मुठ भी मारते हो?”
“हाँ, जम के… कभी कभी हम साथ में ही मारते है…”
मैने अब अपना हाथ उसकी जाँघ पर आराम से रख लिया और सहलाने लगा!
“क्यों, अब भी मुठ मारने का दिल करने लगा?”
“हाँ भैया, आपने वो चुसवाने वाली बात जो कर दी…”
“अच्छा, तो तेरा चुसवाने का दिल करने लगा?”
“हाँ भैया…”
“अब क्या होगा?”
“पता नहीं…”
“चुसवाने का मज़ा लेना है?”
“हाँ…”
“किसी को बतायेगा तो नहीं?”
“नहीं…”
“लँड पूरा खडा है क्या?”
“जी… मगर चूसेगा कौन?”
“तुझे क्या लगता है?”
“जी पता नहीं…”
“आखरी बार बता, चुसवायेगा?”
“किसको?”
मेरा हाथ अब उसकी ज़िप के काफ़ी पास था! इन्फ़ैक्ट मेरी उँगलियाँ अब उसके सुपाडे को ब्रश कर रही थीं और वो अपनी टाँगें फ़ैलाये हुये था!
“पैर ऊपर कर के बैठ जा…” मेरे कहने पर उसने अपने जूते उतार के पैर ऊपर कर लिये!
“आह भैया.. क्या… क्या… मेरा मतलब.. आप चूसोगे?”
“हाँ” कहकर मैने इस बार जब उसके लँड पर हथेली रख के मसलना शुरु किया तो वो पीछे तकिये पर सर रख कर टाँगें फ़ैला के आराम से लेट गया! उसके लँड में जवानी का जोश था!
“खोलो” मैने कहा तो उसने अपनी पैंट खोल दी! उसकी जाँघें अंदर से और गोरी थीं और लँड भी सुंदर सा गुलाबी सा चिकना था! उसने अपनी पैंट जिस्म से अलग कर दी! मैं उसके बगल में लेट गया और उसकी कमर पर होंठ रख दिये तो वो मचला!
“अआई… भैया..अआह…”

साला अंदर से और भी ज़बर्दस्त, चिकना और खूबसूरत था! मैने एक हाथ से उसके जिस्म को भरपूर सहलाना शुरु किया! मैं उसके बदन को उसके घुटनों तक सहलाता! वो मेरे सहलाने का मज़ा ले रहा था!
“चूसो ना भैया…” उसने तडप के कहा तो मैने उसकी नाभि में मुह घुसाते हुये उसकी कमसिन भूरी रेशमी झाँटों में उँगलियाँ फ़िरायी और फ़िर उसके लँड को एक दो बार शेर की तरह पुचकारा तो वो दहाड उठा और उसका सुपाडा खुल गया!
“राजू का लँड कटा हुआ है…”
“मतलब?”
“मतलब जैसा मुसलमानों का होता है ना, वैसा…”
“कैसे?”
“बचपन में ज़िप में फ़ँस गया था…”
“तब तो और भी सुंदर होगा?”
“हाँ, मगर उसका साले का काला है… आपको काले पसंद हैं?”
“हाँ, मुझे हर तरह के लँड पसंद हैं” कहकर मैने उसकी झाँटों में ज़बान फ़िरायी तो उसके कमसिन पसीने का नमक मेरे मुह में भर गया! मैने उसके लँड की जड को अपनी ज़बान से चाटा!
“सी…उउउहह… भैया..अआह…”
“तुझे लगता है, राजू पसंद है…”
“हम बचपन के दोस्त हैं ना… दीपू मैं और वो…”
“अच्छा? मतलब तू ये सब उन दोनों को बतायेगा…”
“हाँ… नहीं नहीं…”
“अरे, अगर उनको भी चुसवाना हो तो बता देना… मुझे प्रॉब्लम नहीं है…”
“हाँ… वो भी चुसवा देंगे आपको…”

मैने उसके लँड को हाथ से पकड के उसके सुपाडे पर ज़बान फ़ेरी!
“अआ..आई… भैया..अआहहह… अआहहह…” उसने सिसकारी भरी तो मुझे श्योर हो गया कि उसने वाक़ई में पहले चुसवाया नहीं है! मैने उसका गुलाबी सुपाडा अपने होंठों के बीच पकडा और पकड के दबाया! “उउहहह…” उसके मुह से आवाज़ निकाली और मैने उसके सुपाडे को अपने मुह में निगल लिया और उस पर प्यार से ज़बान फ़िरा फ़िरा के दबा दबा के चूसा तो वो मस्त हो गया!

“अआह… भैया..अआहहह… बहन..चोद… मज़ा आ… गया.. भैया..अआह…” अब मैने उसको साइड में करवट दिलवा दी और जब उसका लँड पूरा मुह में भर के चूसना शुरु किया तो लौंडा कामुकता से सराबोर हो गया और मेरे मुह में अपने लँड के धक्‍के देने लगा! मैने उसके एक जाँघ अपने मुह पर चढवा ली और एक हाथ से उसके आँडूए और उसकी बिना बालों वाली चिकनी गाँड और उसका गुलाबी टाइट छेद भी सहलाने लगा! दूसरे हाथ को ऊपर करके मैं उसकी छाती और चूचियाँ सहलाने लगा! वो अब पूरी तरह मेरे कंट्रोल में आ गया था! मैने लँड के बाद उसके आँडूए भी मुह में भर के चूसना शुरु किये तो वो बिल्कुल हाथ पैर छोड के मेरे वश में आ गया!
“अआहहह.. सी..उउउह… भैया..आहह.. आह.. भैया..आहहह… मज़ा.. मज़ा.. मज़ा… भैया, मज़ा आ.. गया… बहुत.. मज़ा…” वो सीधे बोल भी नहीं पा रहा था!

आँडूओं के बाद मैने कुछ देर फ़िर से उसका लँड चूसा और फ़िर सीधा उसके आँडूओं के नीचे उसकी गाँड के पास जब मैं चूसने लगा तो वो मस्त हो गया! मैने उसकी चिकनी गाँड पर जब ज़बान फ़िरायी तो वो मचल गया! वो अब ज़ोर लगा लगा के मेरे मुह का मज़ा ले रहा था, उसका सुपाडा मेरी हलक के छेद तक जाकर मेरे गर्म गीले मुह का मज़ा ले रहा था!
“वाह भैया, आप तो मस्त हो…”
“हाँ बेटा, मैं मस्त लडकों को मस्ती देता हूँ…”
“भैया, अब दूध झड जायेगा…” कुछ देर बाद वो बोला!
“झाड देना…”
“कहाँ झाडूँ भैया?”
“मेरे मुह में झाड दे…”
“आपको गन्दा नहीं लगेगा?”
“अबे तू मज़ा ले ना… मेरी चिन्ता छोड…” जब उसको सिग्नल मिल गया तो वो मस्त हो गया और मेरे मुह में भीषण धक्‍के देने लगा! फ़िर मैं समझ गया कि वो ज़्यादा देर तक नहीं टिक पायेगा! मैने उसकी गाँड दबोच के पकड ली और कुछ ही देर में उसका लँड मेरे मुह में फ़ूला और उसका वीर्य मेरे हलक में सीधा झडने लगा, जिसको मैं प्यार से पीता गया! मगर झडने के कुछ देर बाद तक उसका लँड मेरे मुह में खडा रहकर उछलता रहा! मैने उसको अपने होंठों से निचोड लिया और उसके वीर्य की एक एक बून्द पी गया! उसके बाद उसके अपनी पैंट पहन ली और बातें करता रहा!
“क्यों मज़ा आया ना?” मैने पूछा!
“जी भैया, बहुत… साला दिमाग खराब हो गया… गाँड मारने से ज़्यादा मज़ा आया…”
“चलो बढिया है… मगर तुम चुसवाने में काफ़ी एक्स्पर्ट हो…” मैने जब कहा तो वो अपनी तारीफ़ से फ़ूल गया!
“हाँ…”
“तो बोलो, अब तो आते रहोगे ना?”
“और क्या… अगर आपको प्रॉब्लम नहीं होगी, तो…”
“अरे, मुझे क्या प्रॉब्लम होगी यार… आराम से आओ…”
“आप बहुत बढिया आदमी हो… भैया आप मुझे अच्छे लगे…” लडके को शायद वो एक्स्पीरिएंस सच में बहुत पसंद आया था

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