Friday, May 29, 2009

चेहरा लाल गांड काली

प्यारे दोस्तों, मैं एक छात्र हूँ और चण्डीगढ़ में रहता हूँ। मैं आपको अपनी अपनी नौकरानी के साथ हुए पहला अनुभव बताने जा रहा हूँ। वह १८ साल की एक ख़ूबसूरत और गोरी-चिट्टी लड़की है, और मैं २० साल का हूँ। मैं कॉलेज के प्रथम वर्ष में हूँ। मैं एक मध्यवर्गीय परिवार से हूँ। मैं सीधा सा दिखने वाला लड़का हूँ। मेरे दोस्त जब भी अपनी गर्लफ्रेण्ड के बारे में बात करते हैं, मैं वहाँ ख़ामोश होकर बस सुनता हूँ, इसलिए वे मुझसे हमेशा कहा करते हैं कि किसी लड़की को पटा लो यार, तुम तो हमसे कई गुणा अच्छे दिखते हो। मेरी कोई गर्लफ्रेण्ड नहीं है क्योंकि मैं उनपर हज़ारों रुपये खर्च नहीं कर सकता। ऊपर से मैं शर्मीले स्वभाव का भी हूँ। ठीक है कहानी पर वापस आते हैं।

मेरी नौकरानी हमारे घर प्रतिदिन काम करने आया करती थी। मैं उसे देखा तो करता था, पर कभी ग़लत नज़र से नहीं देखा। मैंने ग़ौर किया कि मैं जब भी उसके नज़दीक जाता तो वह मुझे घूरा करती थी। कुछ महीनों के बाद उसने मेरी माँ से कहा कि वह अपने गाँव वापस जा रही है, क्योंकि उसकी शादी ठीक कर दी गई है। अतः मेरी माँ ने उसके पैसों का हिसाब-किताब करके उसे पैसे दे दिए, यह उसका हमारे यहाँ काम का आख़िरी दिन था।

वह रविवार का दिन था, मेरी माँ मेरे पिता के काम में हाथ बँटाने बाहर चली गई, और बहन भी अपने काम से बाहर गई। मैं घर में अकेला था और वह आई, मैंने दरवाज़ा खोला और उसने हमेशा की तरह बर्तन धोने शुरू किए और मैं नहाने के लिए चला गया। वह यह जानती थी, क्योंकि मैं उससे हमेशा कहकर जाता था कि अगर कोई आए तो उसे बैठने के लिए कहो, जबतक मैं नहा कर नहीं आ जाता। मैं अन्दर गया और नहाने लगा।

जब मैं बाहर आया तो पाया कि मेरे कपड़े वहाँ नहीं थे, कपड़े मैंने बिस्तर पर ही रखे थे। मैंने अपना एक हाथ अपने लण्ड पर और दूसरा अपनी गाण्ड पर रखा। उससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह थी कि वह कमरे से जाने की बजाए और वहीं खड़ी हँस रही थी। मैंने पहले सोचा कि मैं वापस बाथरूम चला जाऊँ, पर फिर मैंने निश्चय किया कि वहीं खड़ा रहूँ और मैंने उससे पूछा, "मेरे कपड़े कहाँ हैं? मैंने यहीं रखे थे।"

उसने उत्तर दिया, "मैंने सोचा कि धुले हुए कपड़े हैं, इसलिए तह लगाकर आलमारी में रख दिए।"

ऐसा कहते हुए वह मेरे अण्डकोषों को घूर रही थी। मैंने फट से दूसरा हाथ पीछे से हटाकर आगे ही रख लिया।

उसने कहा, "बहुत बड़ा है।"

मुझे इसपर बड़ा आश्चर्य हुआ, मैंने कहा, "जल्दी कपड़े दो।"

वह पलटी और कपड़े मुझे दे दिए। मैं पहनने लगा, पर मैं देख सकता था कि वह आल्मारी के आईने में मुझे कपड़े पहनते देख रही थी।

मैंने उससे पूछा, "तुम यहाँ क्या कर रही हो???" तबतक मैं कपड़े पहन चुका था।

उसने कहा, आँटी को बोल देना, मैं कल से नहीं आऊँगी।"

मैंने अच्छा, "अच्छा ! और तुम शीशे में क्यूँ देख रही थी?"

वह फिर से मुस्कुराई और शरमा गई। उसने कहा "तुम बहुत गोरे हो।"

मैंने पूछा,"तुम ऐसा क्यों कह रही हो?"

उसने कहा कि वह अपने पति को नहीं चाहती (क्योंकि वह किसी दूर के गाँव से है और देखने में भद्दा है) पर उसके माँ-बाप उसपर शादी करने का दबाव डाल रहे हैं।

मेरा लण्ड खड़ा हो गया था। क्योंकि मेरा लण्ड बहुत बड़ा है तो पैण्ट के ऊपर से साफ पता भी चल रहा था। इसलिए पता नहीं क्यों मैंने अपने पैण्ट की ज़िप खोलकर अपना लण्ड बाहर निकाल लिया (बस ऐसा हो गया) और उससे कहा, "तुम्हें यह देखना था तो देख लो।"

उसका चेहरा लाल हो गया और फिर मैं उसके पास गया और उसका हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रख दिया।

मुझे आश्चर्य हुआ जब उसने कहा कि, "अभी तक जितने घरों में काम किया है, तुम्हारा सबसे बड़ा और गोरा है।"

मुझे काफ़ी अजीब लगा, और मैंने सोचा कि यह बहुत बड़ी छिनाल है। मैं धीरे से अपना हाथ उसकी चूचियों पर ले गया और उसे दबाने और सहलाने लगा। फिर मैंने उसकी साड़ी और ब्लाऊज़ उतार दी। मैंने उसके गुलाबी चूचुक देखे और ख़ुद को उन्हें चूसने से नहीं रोक सका। वह भी धीरे-धीरे मेरा लण्ड चूसने लगी। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। फिर मैंने उसके नीचे के कपड़े उतारना चाहा, पर उसने मना किया। मैंने पूछा, "क्या हुआ?"

उसने कहा, "नहीं मेरी शादी है, कहीं घर वालों को पता चल गया तो?"

मैंने उसे बहुत कहा पर उसने कहा कि वह चली जाएगी।

फिर मैंने कहा "चलो एक बार कपड़े उतार के दिखा दो।"

वह राज़ी हो गई और अपने नीचे के कपड़े और अन्डरवियर उतार दिया। मैंने सोचा कि उस पर टूट पड़ूँ और चोद दूँ फिर मुझे पकड़े जाने का डर भी लगा। वह फिर से चूसती रही। २० मिनट के बाद, मुझमें हिम्मत आई और मैं झड़ गया और मेरे पाँव थरथरा रहे थे, यह बिल्कुल अलग अनुभव था।

जब मैंने आँखें खोलीं तो वहाँ पूरा गड़बड़ था। कुछ बूँदे उसके चेहरे पर, कुछ बिस्तर पर और थोड़ी दीवार पर भी थीं। उसने कपड़े पहने और मुस्कुरा कर यह कहती हुई निकल गई, "आपने मुझे भी गन्दा कर दिया।"

मेरे पास कहने को कुछ नहीं था और वह चली गई।

मैं उसके पीछे-पीछे रसोईघर में आया और फिर से उसकी चूचियाँ दबाने लगा, बहुत मज़ा आया। वह कहती रही, "बस, अब मुझे जाना है।" पर मैं उसे देर करवाता रहा। कुछ मिनट बाद मेरा लण्ड फिर खड़ा हो गया और उससे कहा कि फिर से चूसो, क्योंकि यह तुम्हारा यहाँ आख़िरी दिन है। वह खुशी-खुशी मान गई, और इस बार उसने मेरे अण्डकोष भी चूसे। मैं उसकी प्यारी चूचियों से खेलता रहा।

अगले दिन मैं उसके घर भी गया, यह पता करने कि वह वाक़ई में चली गई है।

इस घटना से मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा। अब जब भी मैं बस में कहीं जा रहा होता हूँ तो अगर कोई लड़की मुझसे रगड़ खा रही होती है, तो यह कोई अनजाने में नहीं होता। कभी-कभी तो कुछ लड़कियाँ अपनी चूचियों से सीट पर अधिक जगह पाने के लिए धक्का देतीं हैं (जबकि वह पहले से ही 75 प्रतिशत सीट पर क़ब्जा किए रहेंगी)।

जब भी मैं इस घटना को याद करता हूँ, मेरा लण्ड तुरन्त खड़ा हो जता है। गूगल पर थोड़ा ढ़ूँढ़ने के बाद मुझे इस साईट का पता चला तो मैंने निश्चय किया कि मैं अपना अनुभव आपके साथ बाटूँगा। मैं इस साईट को धन्यवाद करना चाहूँगा, जिसके माध्यम से मैं अपना मज़ेदार अनुभव लोगों में बाँट सका।

मैं आपसे आपकी प्रतिक्रिया जानना चाहूँगा

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